गरमी की तपती दोपहरी, चाहे कहीं छाँह हो गहरी।
वर्षा, बिजली, पानी, ओले, कोयल मोर पपीहा बोले।
रंग-बिरंगे फूलोंवाली, चाहे सूनी सूखी डाली।
बर्फ ढँकी ऊँची चोटी हो, नदियों की लहरें छोटी हों।
यहाँ-वहाँ या जहाँ-तहाँ हो, कौन जगह है नहीं कहाँ हो?
साँस-साँस में कू रहती है, सबके लिए कष्ट सहती है।
पर उपकारी हवा सरीखी, तुझ सी तू ही, और न देखी।
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