छुट्टी है पर काम बहुत है, गर्मी भी बदनाम बहुत है।
मुझको तो जुट जाना है अब, ऊँचा नाम कमाना है अब।
काश्मीर का चित्र बनाऊँ, फूलों का कालीन बिछाये।
फिर नीले- नीले पानी में, नोकाओं की पांत दिखाऊँ।
चित्रकार हूँ, खेल नहीं है, बेकारी से मेल नहीं है।
कविता एक बनाऊँगा मैं, फिर उसको छपवाऊँगा मैं।
उसको जो बच्चे गायेंगे, उनको खुशी दिलाऊँगा मैं।
रंगों में रंगीनी घोलूँ, या जन-जन के स्वर में बोलूँ।
हूँ मैं सपनों का निर्माता, कल का गायक भाग्यविधाता।
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