गर्मी के दिन आये, छुट्टियाँ लिए,
हाँफ रही दोपहरी, आग -सी पिये।
घर में सब बैठे हैं, रात-सी किये,
वक्त बिता सुस्ती में, मिले क्या जिये?
बाधाओं के पहाड़, हँस-हँस कर ठेलें,
बच्चे आ बागों में छुपाछुपी खेलें।
आमों के पेड़ आज, मौन ना रहें ,
मीठी खुशबु उनकी, बात ये कहे।
"तपती दोपहरी जो, धैर्य से सहे,
मीठे आमों का रस, वही तो लहे।"
खुशियाँ सबको बाँटें, सुख-दुख सब झेलें,
बच्चो आओ बागों में छुपाछुपी खेलें।
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