Thursday, 27 May 2010

छुपा-छुपी खेलें

गर्मी के दिन आये, छुट्टियाँ लिए,

हाँफ रही दोपहरी, आग -सी पिये।

घर में सब बैठे हैं, रात-सी किये,

वक्त बिता सुस्ती में, मिले क्या जिये?

बाधाओं के पहाड़, हँस-हँस कर ठेलें,

बच्चे बागों में छुपाछुपी खेलें।

आमों के पेड़ आज, मौन ना रहें ,

मीठी खुशबु उनकी, बात ये कहे।

"तपती दोपहरी जो, धैर्य से सहे,

मीठे आमों का रस, वही तो लहे।"

खुशियाँ सबको बाँटें, सुख-दुख सब झेलें,

बच्चो आओ बागों में छुपाछुपी खेलें।

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