Saturday, 15 May 2010

सच्ची गुरु चिड़िया

रामजी मिश्र

तिनका-तिनका लाती चिड़िया, उन्हें सजाकर रखती है।

बड़े जतन से बना घोंसला, उसमें सुख से रहती है।

आसमान में उड़ती-फिरती मीठे गाने गाती है।

बच्चों का पालन करती दाना चुग्गा लाती है।

जो दुख होता सह लेती है, मेहनत कर सुख पाती है।

कभी दुखड़ा रोती अपना, कभी आँसू लाती है।

सूरज ढलते ही बच्चों को, अपने साथ सुलाती हे।

कोरी बात करती चिड़िया, भाषण नहीं पिलाती है।

दूर-दूर तक उड़ते कैसे खुद उड़कर दिखलाती है।

जैसा करती चिड़िया रानी वैसे ही करते बच्चे।

सच्ची गुरु की नकल सीखते, फिर भी बनते सच्चे।


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