Monday, 31 May 2010

जाड़े के मौसम में

जाड़े के मौसम में चुनमुन के मज़े हैं,

सूट-बूट-मफलर कनटोप में सजे हैं।

गर्म-गर्म पानी से सुबह ही नहाए,

बातें मिश्री घोलें सबके मन भाएँ।

धूप में ताज़े गुलाब सा वह खिल जाए,

खुश होकर खेले जो शेरा मिल जाए।

लेकर बस्ता चले सात ही बजे हैं।

चुनमुन के मज़ें हैं कनटोप में सजे हैं।

पढ़-लिखकर एक बजे चुनमुन घर आए

फौज़ ले खिलौनों की छत पर जम जाए।

तिल सी हो बात उसे ताड़-सी बढ़ाये,

जितना कुछ आये, लूसी को पढ़ाये।

रेशमी रजाई में चाँद भी लजे है,

चुनमुन के मज़ें बैं कनटोप में सजे हैं।

Thursday, 27 May 2010

छुपा-छुपी खेलें

गर्मी के दिन आये, छुट्टियाँ लिए,

हाँफ रही दोपहरी, आग -सी पिये।

घर में सब बैठे हैं, रात-सी किये,

वक्त बिता सुस्ती में, मिले क्या जिये?

बाधाओं के पहाड़, हँस-हँस कर ठेलें,

बच्चे बागों में छुपाछुपी खेलें।

आमों के पेड़ आज, मौन ना रहें ,

मीठी खुशबु उनकी, बात ये कहे।

"तपती दोपहरी जो, धैर्य से सहे,

मीठे आमों का रस, वही तो लहे।"

खुशियाँ सबको बाँटें, सुख-दुख सब झेलें,

बच्चो आओ बागों में छुपाछुपी खेलें।

छुट्टी के दिन आये

पूर्ण मनोरथ हुये कि छुट्टी के दिन आये,

खत्म कठिन दिन हुये, कि छुट्टी के दिन आये।

चुप रहना अब खले, शोरगुल ही हो भले,

सब मनमाना चले, कि छुट्टी के दिन आये।

बहती हे लू बहे, दुपहरी कुछ भी कहे,

मन खुश-खुश सब सहे, कि छुट्टी के दिन आये।

बिछड़े साथी मिले, जुड़े सब सिलसिले,

मन फूलों सा खिले, कि छुट्टी के दिन आये।

सब कुछ अपना लगे, सपनों में मन पगे,

सदा रहें हम जगे, कि छुट्टी के दिन आये।

Saturday, 22 May 2010

कल का गायक

छुट्टी है पर काम बहुत है, गर्मी भी बदनाम बहुत है।

मुझको तो जुट जाना है अब, ऊँचा नाम कमाना है अब।

काश्मीर का चित्र बनाऊँ, फूलों का कालीन बिछाये।

फिर नीले- नीले पानी में, नोकाओं की पांत दिखाऊँ।

चित्रकार हूँ, खेल नहीं है, बेकारी से मेल नहीं है।

कविता एक बनाऊँगा मैं, फिर उसको छपवाऊँगा मैं।

उसको जो बच्चे गायेंगे, उनको खुशी दिलाऊँगा मैं।

रंगों में रंगीनी घोलूँ, या जन-जन के स्वर में बोलूँ।

हूँ मैं सपनों का निर्माता, कल का गायक भाग्यविधाता।