पहियों को चलने दो, वे ही तो गति हैं।
मंजिल तक पहुँचाते, गति की प्रगति हैं।
जोड़ते हैं दूरियों को, सड़को को, गलियों को.
खेतों को, नहरों को, गावों को शहरों को।
करते हैं कायम रिश्ते व्यक्ति का व्यक्ति से,
भगवान का भक्ति से, सृजन का शक्ति से।
पहिए ही गर्मी को, करते हैं सर्द,
पहिए ही हमारे-तुम्हारे, हरते हैं दर्द।
पहिए ही प्रतीक बने देश के काल के,
शीघ्रगामी वाहन हें सवारी और माल के।
पहियों के रुकने से गति रुक जाएगी,
गति के रुक जाने से उमंग चुक जाएगी,
चुके हुए उमंगों का, देश नहीं जीता है,
सत्य वचन चक्री का गीता है, गीता है।
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