Tuesday, 13 July 2010

चुनमुन


चुनमुन सुने रेडियो बाजा, दीदी कहती चुनमुन आजा।

चुनमुन दौड़ा आए हाली, खुश होकर वह पीटे ताली,

जाने क्या वह समझे-बूझे, कहे किलक कर, बाजा-बाजा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

कभी मगन मन गाना गाए, छम-छम छम-छम नाच दिखाए,

करता पूरा ड्रामा चुनमुन, लेकर गुड़िया-गुड्डा राजा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

नानूकी नानी की नौकास खोजे रेल-खेल का मौका,

जादू आवाज़ों का ऐसा, उसे लगे सब ताजा़-ताज़ा

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

कभी सपेरा कभी मदारी, कभी कर चिड़ियों से यारी,

कठपुतली-गुब्बारेवाले, चुनमुन के मन भाए, जा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

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