हैं चिड़ियाँ चूँ-चूँ गातीं, मन में उमंग भर जातीं।
वे उड़ती डाली-डाली, छिप जातीं नीली-काली।
हर मौसम में हरषाती, खुश रहना हमें सिखातीं।
वे आँसू नहीं गिरातीं, औरो को दुख न सुनातीं।
अपने पंखों के बल पर,उड़ती फिरती हैं फर-फर।
दाना चोंचों में भरकर, बच्चों को पालें श्रमकर।
घर अपना स्वयं बनातीं, मिल जुलकर गाना गातीं।
आँगन में सबके जातीं, बच्चों का मन बहलातीं।
वे इलको पकड़ न पाएँ, मन-ही-मन यही मनाएँ-
"हमको भी पर उग आएँ, तो हम भी यों उड़ जाएँ।"
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