Thursday, 17 June 2010

चिड़ियाँ

हैं चिड़ियाँ चूँ-चूँ गातीं, मन में उमंग भर जातीं।

वे उड़ती डाली-डाली, छिप जातीं नीली-काली।

हर मौसम में हरषाती, खुश रहना हमें सिखातीं।

वे आँसू नहीं गिरातीं, औरो को दुख सुनातीं।

अपने पंखों के बल पर,उड़ती फिरती हैं फर-फर।

दाना चोंचों में भरकर, बच्चों को पालें श्रमकर।

घर अपना स्वयं बनातीं, मिल जुलकर गाना गातीं।

आँगन में सबके जातीं, बच्चों का मन बहलातीं।

वे इलको पकड़ पाएँ, मन-ही-मन यही मनाएँ-

"हमको भी पर उग आएँ, तो हम भी यों उड़ जाएँ।"

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