आसमान भी तो पानी का अपना घर है,
पर धरती की बात गगन से भी बढ़कर है।
आसमान में धमा-चौकड़ी खूब मचाते,
धौरे-कजरारे रूपों से मन ललचाते।
पर धरती के सींच फसल जब उपजाते हैं,
तब जीवनधर नाम सही कर दिखलाते है।
पानी को पाकर मछली जब हर्षाती है,
तैर-तैर कर खूब खेल तब दर्शाती है।
पानी झरने में झर-झर, झर कर गाता है,
गाते-गाते नित आगे बढ़ता जाता है।
दूर पहाड़ों से जब पानी चलकर आता,
फल-पत्तियों में ताज़े सात रंग लाता।
पानी अपनी शक्ति बिजलियों में भर जाता।
शक्तिहीन होकर भी जग से बल पाता।
सभी फलों में स्वाद इसी से है आ पाता,
पानी ही से सभी रसों का सच्चा नाता।
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