Sunday, 6 June 2010

रसराज पानी

आसमान भी तो पानी का अपना घर है,

पर धरती की बात गगन से भी बढ़कर है।

आसमान में धमा-चौकड़ी खूब मचाते,

धौरे-कजरारे रूपों से मन ललचाते।

पर धरती के सींच फसल जबपजाते हैं,

तब जीवनधर नाम सही कर दिखलाते है।

पानी को पाकर मछली जब हर्षाती है,

तैर-तैर कर खूब खेल तब दर्शाती है।

पानी झरने में झर-झर, झर कर गाता है,

गाते-गाते नित आगे बढ़ता जाता है।

दूर पहाड़ों से जब पानी चलकर आता,

फल-पत्तियों में ताज़े सात रंग लाता।

पानी अपनी शक्ति बिजलियों में भर जाता।

शक्तिही होकर भी जग से बल पाता।

सभी फलों में स्वाद इसी से है पाता,

पानी ही से सभी रसों का सच्चा नाता।

No comments:

Post a Comment