मम्मी , वन की नन्हीं चिड़िया, दूर पहाड़ों पर जो रहती,
वर्षा -बिजली, लू-लपटों को पेड़ों पर कैसे सहती?
वन-बिलाव, साँपों-शेरों में रहकर मीठे गाने गाती.
खले घोंसलों में बच्चों को छोड़ अकेले दाने लाती।
लेकिन मम्मी, अगर किसी दिन, फल या दाना एक न पाये,
तो बेचारी नन्हीं चिड़िया कैसे अपनी भूख मिटाये?
बोली मम्मी, वन की चिड़िया कभी न इसकी चिंता करती,
थोड़ा दाना-पानी पाकर, अपने बच्चों का दुख हरती।
उसको अपने पर पर पूरा, रहता सदा भरोसा ऐसा,
हमें-तुम्हें अपने हाथों पर , रहता नहीं भरोसा वैसा।
तभी आदमी दुख को सहता,हँसना-गाना भूला रहता,
कभी कमाई औरों की पा मुफ्त उड़ाकर फूला रहता।