Friday, 17 December 2010

नन्हीं चिड़ियाँ


मम्मी , वन की नन्हीं चिड़िया, दूर पहाड़ों पर जो रहती,

वर्षा -बिजली, लू-लपटों को पेड़ों पर कैसे सहती?

वन-बिलाव, साँपों-शेरों में रहकर मीठे गाने गाती.

खले घोंसलों में बच्चों को छोड़ अकेले दाने लाती।

लेकिन मम्मी, अगर किसी दिन, फल या दाना एक पाये,

तो बेचारी नन्हीं चिड़िया कैसे अपनी भूख मिटाये?

बोली मम्मी, वन की चिड़िया कभी इसकी चिंता करती,

थोड़ा दाना-पानी पाकर, अपने बच्चों का दुख हरती।

उसको अपने पर पर पूरा, रहता सदा भरोसा ऐसा,

हमें-तुम्हें अपने हाथों पर , रहता नहीं भरोसा वैसा।

तभी आदमी दुख को सहता,हँसना-गाना भूला रहता,

कभी कमाई औरों की पा मुफ्त उड़ाकर फूला रहता।

जल परियाँ

मम्मी, देखो ये जल परियाँ, दूध धुली पहने घाँघरियाँ।

नाच रही हें झम्मक-झैंयाँ, धुनी रुई पर पैयाँ-पैयाँ।

हरी-भरी पर्वत-मालाएँ, इन्हें घेर हँसतीं बालाएँ।

टीले बड़े हठीले फैले, ऊँचे-नीचे ये मटमैले।

इनपर फिसल दौड़ती कल-कल,

छिछली धारा छल-छल, छल-छल।

मोती के पानी-सा मन है. नीले नभृ सा इनका तन है।

हँसी बिखेरें हीरे-जैसी, भरी उमंगें कैसी-कैसी।

साहस की साकार पुतलियाँ, मम्मी, देखो जल-परियाँ।

Tuesday, 19 October 2010

पहिए


पहियों को चलने दो, वे ही तो गति हैं।

मंजिल तक पहुँचाते, गति की प्रगति हैं।

जोड़ते हैं दूरियों को, सड़को को, गलियों को.

खेतों को, नहरों को, गावों को शहरों को।

करते हैं कायम रिश्ते व्यक्ति का व्यक्ति से,

भगवान का भक्ति से, सृजन का शक्ति से।

पहिए ही गर्मी को, करते हैं सर्द,

पहिए ही हमारे-तुम्हारे, हरते हैं दर्द।

पहिए ही प्रतीक बने देश के काल के,

शीघ्रगामी वाहन हें सवारी और माल के।

पहियों के रुकने से गति रुक जाएगी,

गति के रुक जाने से उमंग चुक जाएगी,

चुके हुए उमंगों का, देश नहीं जीता है,

सत्य वचन चक्री का गीता है, गीता है।

Tuesday, 13 July 2010

बापू के बंदर


हाथी से मित्रता हमारी, चींटी से भी यारी।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, यह दुनिया है न्यारी।

परियाँ सपने लेकर आतीं, हमको दे जाती हैं।

परी लोक की सैर कराने, हमको ले जाती हैं।

तितली नाच सिखाती हमको, नहीं पकड़ में आती।

जुगनु दिप-दिप दीप दिखाते, बिना तेल बाती।

मेंढक पाठ पढ़ाते मन से खूब चहकना चिड़ियाँ।

हरदम हँसते रहो यही तो कहती है फुलझड़ियाँ।

दीन गाता है रोज़ प्रभाती, लोरी गातीं रातें।

पुरवा हवा साथ चलती है करती मीठी बातें।

आँख, कान, मुँह मूँदे हरदम, बापू के बंदर हैं।

बाहर जैसे भोले-भाले वैसे ही अंदर हैं।