Thursday, 5 January 2012

खेल क्रिकेट


उषा सुंदरी जही, द्वार पूरब का खोला,

किरणों का ले बैट, गया दिन था भोला।

छिटक गयी सब ओर, सुहानी ऐसी लाली,

लगे विहँसने फूल, बजा पत्तों की ताली।

अजब गेंदबाजी की उषा सयानी ने,

समझाया चुन्नु-मुन्नु को नानी ने।

पहली गेंद लगाया दिन ने ऐसा छक्का,

दमक रही थी गेंद, हुए सब हक्का-बक्का।

आसमान से गेंद भास्करी छूट जाए ,

फील्डर तारे छिपे, कहीं सिर टूट जाए।

छीक सीध मे साहस कर संध्या थी आयी,

बैट्समैन दिन कैच हुआ, उषा शरमायी।

सूरज की वह गेंद, बनी संध्या का टीका,

आसमान का चेहरा लाल हुआ, फिर फीका।

आओ कुकड़ुकूँ जी आओ


लाल-लाल कलँगी फहराओ, आओ कुकड़ुकूँ जी आओ।

यहाँ मुंडेरे पर बैठो, आलस-सुस्ती दूर भगाओ,

सूरज दादा कहाँ छिपे हैं, एक करारी बाँग लगाओ।

इन्हें जगाओ, उन्हें जगाओ, आओ कुकड़ुकूँ जी आओ।

बाँग तुम्हारी सुनकर देखो, आसमान ने पलकें खोलीं,

हवा चल पड़ी खुशबू वाली, डाल-डाल पर चिड़ियाँ बोलीं।

सूरज की किरणें चमकाओ, आओ कुकड़ुकूँ जी आओ।


Friday, 17 December 2010

नन्हीं चिड़ियाँ


मम्मी , वन की नन्हीं चिड़िया, दूर पहाड़ों पर जो रहती,

वर्षा -बिजली, लू-लपटों को पेड़ों पर कैसे सहती?

वन-बिलाव, साँपों-शेरों में रहकर मीठे गाने गाती.

खले घोंसलों में बच्चों को छोड़ अकेले दाने लाती।

लेकिन मम्मी, अगर किसी दिन, फल या दाना एक पाये,

तो बेचारी नन्हीं चिड़िया कैसे अपनी भूख मिटाये?

बोली मम्मी, वन की चिड़िया कभी इसकी चिंता करती,

थोड़ा दाना-पानी पाकर, अपने बच्चों का दुख हरती।

उसको अपने पर पर पूरा, रहता सदा भरोसा ऐसा,

हमें-तुम्हें अपने हाथों पर , रहता नहीं भरोसा वैसा।

तभी आदमी दुख को सहता,हँसना-गाना भूला रहता,

कभी कमाई औरों की पा मुफ्त उड़ाकर फूला रहता।

जल परियाँ

मम्मी, देखो ये जल परियाँ, दूध धुली पहने घाँघरियाँ।

नाच रही हें झम्मक-झैंयाँ, धुनी रुई पर पैयाँ-पैयाँ।

हरी-भरी पर्वत-मालाएँ, इन्हें घेर हँसतीं बालाएँ।

टीले बड़े हठीले फैले, ऊँचे-नीचे ये मटमैले।

इनपर फिसल दौड़ती कल-कल,

छिछली धारा छल-छल, छल-छल।

मोती के पानी-सा मन है. नीले नभृ सा इनका तन है।

हँसी बिखेरें हीरे-जैसी, भरी उमंगें कैसी-कैसी।

साहस की साकार पुतलियाँ, मम्मी, देखो जल-परियाँ।

Tuesday, 19 October 2010

पहिए


पहियों को चलने दो, वे ही तो गति हैं।

मंजिल तक पहुँचाते, गति की प्रगति हैं।

जोड़ते हैं दूरियों को, सड़को को, गलियों को.

खेतों को, नहरों को, गावों को शहरों को।

करते हैं कायम रिश्ते व्यक्ति का व्यक्ति से,

भगवान का भक्ति से, सृजन का शक्ति से।

पहिए ही गर्मी को, करते हैं सर्द,

पहिए ही हमारे-तुम्हारे, हरते हैं दर्द।

पहिए ही प्रतीक बने देश के काल के,

शीघ्रगामी वाहन हें सवारी और माल के।

पहियों के रुकने से गति रुक जाएगी,

गति के रुक जाने से उमंग चुक जाएगी,

चुके हुए उमंगों का, देश नहीं जीता है,

सत्य वचन चक्री का गीता है, गीता है।