उषा सुंदरी जही, द्वार पूरब का खोला,
किरणों का ले बैट, आ गया दिन था भोला।
छिटक गयी सब ओर, सुहानी ऐसी लाली,
लगे विहँसने फूल, बजा पत्तों की ताली।
अजब गेंदबाजी की उषा सयानी ने,
समझाया चुन्नु-मुन्नु को नानी ने।
पहली गेंद लगाया दिन ने ऐसा छक्का,
दमक रही थी गेंद, हुए सब हक्का-बक्का।
आसमान से गेंद भास्करी छूट न जाए ,
फील्डर तारे छिपे, कहीं सिर टूट न जाए।
छीक सीध मे साहस कर संध्या थी आयी,
बैट्समैन दिन कैच हुआ, उषा शरमायी।
सूरज की वह गेंद, बनी संध्या का टीका,
आसमान का चेहरा लाल हुआ, फिर फीका।