Tuesday, 13 July 2010

बापू के बंदर


हाथी से मित्रता हमारी, चींटी से भी यारी।

छोटा-बड़ा नहीं है कोई, यह दुनिया है न्यारी।

परियाँ सपने लेकर आतीं, हमको दे जाती हैं।

परी लोक की सैर कराने, हमको ले जाती हैं।

तितली नाच सिखाती हमको, नहीं पकड़ में आती।

जुगनु दिप-दिप दीप दिखाते, बिना तेल बाती।

मेंढक पाठ पढ़ाते मन से खूब चहकना चिड़ियाँ।

हरदम हँसते रहो यही तो कहती है फुलझड़ियाँ।

दीन गाता है रोज़ प्रभाती, लोरी गातीं रातें।

पुरवा हवा साथ चलती है करती मीठी बातें।

आँख, कान, मुँह मूँदे हरदम, बापू के बंदर हैं।

बाहर जैसे भोले-भाले वैसे ही अंदर हैं।

चुनमुन


चुनमुन सुने रेडियो बाजा, दीदी कहती चुनमुन आजा।

चुनमुन दौड़ा आए हाली, खुश होकर वह पीटे ताली,

जाने क्या वह समझे-बूझे, कहे किलक कर, बाजा-बाजा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

कभी मगन मन गाना गाए, छम-छम छम-छम नाच दिखाए,

करता पूरा ड्रामा चुनमुन, लेकर गुड़िया-गुड्डा राजा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

नानूकी नानी की नौकास खोजे रेल-खेल का मौका,

जादू आवाज़ों का ऐसा, उसे लगे सब ताजा़-ताज़ा

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।

कभी सपेरा कभी मदारी, कभी कर चिड़ियों से यारी,

कठपुतली-गुब्बारेवाले, चुनमुन के मन भाए, जा,

चुनमुन सुने रेडियो बाजा।